घर खर्च चलाने के लिए जमीन तक बेचनी पड़ी, वह डटा रहा, आईआईटी से बना इंजीनियर
बात 2015 की है । पहली जनवरी की सुबह सुनहरी धूप थी। मैं सुपर 30 के विद्यार्थियों के लिए नए साल की शुरुआत में किसी नए अभ्यास को देने की तैयारी में था। एक ऐसा फाॅर्मूला, जिससे किसी भी मुश्किल सवाल का हल आसानी से हो सके। विद्यार्थी अभ्यास करने लगे। धूप में मेरी आंख लग गई। जब जागा तो सामने सुमित था। हाथ में मिठाई के साथ एक शुभ समाचार लाया था वह। उसकी नौकरी जो लग गई थी। सुमित को देखते ही छह साल पहले का प्रसंग मेरे जेहन में ताजा हो गया। तब वह इसी तरह मेेरे सामने था। दीन-हीन हालत में। अपनी आपबीती सुना रहा था।
सरकारी स्कूल से की पढ़ाई की शुरुआत
बिहार के एक छोटे से गांव रामपुर नगमा के रहने वाले उसके पिता विद्यासागर सिंह एक ऐसे कॉलेज में बिना पैसे के काम करते थे, जिसके सरकारी होने की उम्मीद में उन्हें अपनी पक्की नौकरी का भरोसा था। परिवार पांच बच्चों का हो गया। आखिरकार उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। सुमित की मां उर्मिला बच्चों के भविष्य को लेकर फिक्रमंद थीं। वे अपने मायके में अकेली थीं, जहां तीन बीघा जमीन उन्हें ही मिलनी थी। मगर कोर्ट-कचहरी के लंबे चक्करों के बाद वह मिली। परिवार को भोजन की चिंता से मुक्ति मिली। यह परिवार ननिहाल की शरण में आ गया। विद्यासागर खेती में जुट गए। मजबूरी में बच्चों का सरकारी स्कूल में ही दाखिला कराना पड़ा।
गरीबी में जमीन तक बेचनी पड़ी
खपरैल के कच्चे घर में ही पढ़ाई। सुमित ने बताया, बरसात के दिनों में रात को छत टपकती। पानी से किताब-कॉपी को बचाते हुए हम बच्चे एक दीये की रोशनी में घेरा बनाकर पढ़ते। तब भी गुजारा मुश्किल हुआ तो पिता ने जमीन बेचनी शुरू कर दी। बिहार बोर्ड की परीक्षा सुमित ने अच्छे अंकों से पास की। शहर जाकर पढ़ने की स्थिति थी नहीं। घोर निराशा के उन दिनों में किसी ने उसे सुपर 30 का रास्ता बता दिया था। तब वह इसी तरह मेरे सामने आकर खड़ा था। मैंने उसे अपनी टीम में शामिल किया। उसने दिन-रात एक कर दिया। क्लास में बेहिचक सवाल का जवाब देता ।
कड़ी मेहनत से आईआईटी में मिला एडमिशन
साल 2010 में इम्तिहान नजदीक थे। उन्हीं दिनों उसके पिता ने कर्ज लेकर और बची हुई जमीन बेचकर सुमित की बड़ी बहन की शादी कर दी। परीक्षा देकर लौटे सुमित के चमकते चेहरे की रौनक अब तक याद है मुझे। रिजल्ट के दिन भी वह आत्मविश्वास से भरा हुआ था। उसे अच्छी रैंक मिली। आईआईटी खड़गपुर में दाखिला मिला। वक्त जैसे पंख लगाकर उड़ गया। सुमित परीक्षा की तैयारी में जितना समर्पित था, आईआईटी जाकर भी उसने पढ़ाई को तपस्या की तरह पूरा किया। नए साल में अच्छी खबर उसने यह दी कि उसे एलएंडटी में काम का पहला मौका मिला। सुमित के परिवार में सफलता का दौर यहीं नहीं रुका। उसकी शादीशुदा बहन भी बिहार लोकसेवा आयोग की परीक्षा में बाजी मारकर अफसर बन चुकी है। सुमित के बड़े भाई भी अब पढ़-लिखकर स्कूल में टीचर बन गए हैं।
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